Aug 31, 2015

मुझे लगा माँ हमेशा होगी


मुझे लगा माँ हमेशा होगी

पहली बार आँख खुली तो देखा था
रोती भी थी मुस्कुराती भी
शायद तभी समझ गयी थी मैं
सबसे ज़्यादा प्यार तुम ही दोगी
मुझे लगा माँ हमेशा होगी

डाट मार प्यार दुलार
घोट पिलाया शिष्टा व्यवहार
कुछ गलत करने से पहले झिझकती हूँ
माँ जानेगी तो क्या सोचेगी
मुझे लगा माँ हमेशा होगी

पिताजी के नाम से डराती
पर कोई गुस्साए तो ढाल बन जाती
आज भी भिड़ जाती हूँ बिन सोचे
दिल में आता है माँ संभाल लेगी
मुझे लगा माँ हमेशा होगी

बचपन में पकवान, फिर जेब खर्च
जवानी में सलाह और उदासीन फासले
शादी में तो मानो घर ही लुटायेगी
मैं बहसी भी थी, 'और कितना दोगी'
मुझे लगा माँ हमेशा होगी

मैं बढ़ती गई वो ढ़लती गयी
कभी सर, कभी कमर, कभी घुटने,
तस्वीरों से बूझा उसका बुढ़ापा 
पहले देख लेती तो शायद तैयार होती
मुझे लगा माँ हमेशा होगी

अब माँ नहीं रही 
कभी उसे साड़ियों में सूंघती हूँ 
कभी पुराने वीडियों में ढूंढती हूँ 
चलो जहाँ भी हो तुम, अब दुःख न सहोगी 
मेरे लिए तो माँ... तुम हमेशा होगी 

Aug 21, 2015

पुरानी नदी



तब यहाँ एक नदी बहा करती थी 
वो गाँव से गुज़रती थी

धुप से झुलसे किसान कुछ चुल्लू छीटें ले जाते    
कभी बाजरा कभी ऊख, कभी बोते कभी गिराते
उन उबलती देहों को शीतल रखा करती थी 
तब यहाँ एक नदी बहा करती थी

घूंघट गेरे सब लुगाई पनघट पे जमड़ती
निंदारस, हास्य, दुःख, विनोद बन बन करती
सबके सपने गपोड़ें सुन अंदर छुपा रखती थी
तब यहाँ एक नदी बहा करती थी

अकसर गोधूलि पीपल तले अल्हड प्रेम उमड़ते  
कभी आखें टकरती तो कभी कंधे रगड़ते
उन टप्पे खाते कंकड़ों को लुका ले चलती थी 
तब यहाँ एक नदी बहा करती थी

उस किनारे लोग अक्सर अपने मुर्दे जलाते
कभी मइया तो कभी बाबा के कपार फोड़े जाते 
जड़ को डुबकी लगवा चेतन संग सिसकती थी
तब यहाँ एक नदी बहा करती थी

उस तरफ साहूकार की बहू-पालकी उतरी
और यहाँ बह मरी थी बिमला चमारिन की पुत्री 
हर किस्से कहानी की तो सूत्राधार बनती थी 
तब यहाँ एक नदी बहा करती थी

फिर सड़क हुई, सहर हुआ, दोनों ओर ईटों के पिंजरे 
रस्ते चौड़े हो चले, जत्थे हुए संकरे
छिछली होकर सूख चली, पहले बड़ी अकड़ती थी
सुनते हैं, तब यहाँ एक नदी बहा करती थी

वो गाँव से गुजरती थी