तब यहाँ एक नदी बहा करती थी
वो गाँव से गुज़रती थी
धुप से झुलसे किसान कुछ चुल्लू छीटें ले जाते
कभी बाजरा कभी ऊख, कभी बोते कभी गिराते
उन उबलती देहों को शीतल रखा करती थी
तब यहाँ एक नदी बहा करती थी
घूंघट गेरे सब लुगाई पनघट पे जमड़ती
निंदारस, हास्य, दुःख, विनोद बन बन करती
सबके सपने गपोड़ें सुन अंदर छुपा रखती थी
तब यहाँ एक नदी बहा करती थी
अकसर गोधूलि पीपल तले अल्हड प्रेम उमड़ते
कभी आखें टकरती तो कभी कंधे रगड़ते
उन टप्पे खाते कंकड़ों को लुका ले चलती थी
तब यहाँ एक नदी बहा करती थी
उस किनारे लोग अक्सर अपने मुर्दे जलाते
कभी मइया तो कभी बाबा के कपार फोड़े जाते
जड़ को डुबकी लगवा चेतन संग सिसकती थी
तब यहाँ एक नदी बहा करती थी
उस तरफ साहूकार की बहू-पालकी उतरी
और यहाँ बह मरी थी बिमला चमारिन की पुत्री
हर किस्से कहानी की तो सूत्राधार बनती थी
तब यहाँ एक नदी बहा करती थी
फिर सड़क हुई, सहर हुआ, दोनों ओर ईटों के पिंजरे
रस्ते चौड़े हो चले, जत्थे हुए संकरे
छिछली होकर सूख चली, पहले बड़ी अकड़ती थी
सुनते हैं, तब यहाँ एक नदी बहा करती थी
वो गाँव से गुजरती थी
Wah Ustaad, Wah...
ReplyDeleteBahut gehri baat kar dii, Mishra jee
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