बाहर सड़क से जनाज़ा निकल रहा था किसी का, अन्दर हम और महोतरमा प्याली चाय पी रहे थे
रविवार की ठण्ड सुबह पर अखबार परसा हुआ था, कभी सुर्खियाँ जीत रही थी तो कभी चुस्कियां
ज्यूँ बहार जयकारे तेज़ हो रहे थे, त्यूँ वो डूबा बिस्कुट नर्म हो रहा था
क्राइम न्यूज़ में इतनी मशगूल थे, कब टूट के गिर गया दिखा ही नहीं
दाँतों से ताली बजी तो ध्यान गया, कैसी ताक़त लगा रहे थे जनाज़े वाले
कोई गैरधर्मी सुने तो समझे, कहीं इनका राम मिथ्या तो नहीं
ख़ैर चौखट से जब संगत निकली, तो अखबार पटक बाहर हो लिए
ज़िन्दगी की औकात नहीं हमारे इधर, पर मरा डाकू भी प्रणामों पर झुलसता है
कोई गैरधर्मी सुने तो समझे, कहीं इनका राम मिथ्या तो नहीं
ख़ैर चौखट से जब संगत निकली, तो अखबार पटक बाहर हो लिए
ज़िन्दगी की औकात नहीं हमारे इधर, पर मरा डाकू भी प्रणामों पर झुलसता है
भूरी पालकी पर एक गठ्ठा सा था चादर से ढका, ऊपर गुलाब गेंदे बिछे थे
जुलूस को ताक कर देखा तो बस सफ़ेद मुंडे सर और झुर्रियां दिखाई दी
पार्क के रिटायर्ड बुढ्ढे थे सब, जिनका दिन गप्पों और शाम पत्तों से गुज़रती थी
ज़रूर किसी वृद्ध का वक़्त रहा होगा सोच हम चिल्लाये ‘अरे कौन गुज़र गया’
जुलूस को ताक कर देखा तो बस सफ़ेद मुंडे सर और झुर्रियां दिखाई दी
पार्क के रिटायर्ड बुढ्ढे थे सब, जिनका दिन गप्पों और शाम पत्तों से गुज़रती थी
ज़रूर किसी वृद्ध का वक़्त रहा होगा सोच हम चिल्लाये ‘अरे कौन गुज़र गया’
एकाएक संगत थमी और लगी हमें ताड़ने, मानो मुर्दे की शिनाख़्त करने आए हों
एक जनाब चेहरे की शिकन लिए कपकपाती आवाज़ में रुआंसे से बोले
‘बाबू सुन कर तुम कहाँ मानोगे, यही कहना बुढ्ढे पगलाए गए हैं’
थोड़ा झुंझला कर हम धीमी आवाज़ में बोले, ‘लगता है कोई नजदीकी चल बसा बाबा
एक जनाब चेहरे की शिकन लिए कपकपाती आवाज़ में रुआंसे से बोले
‘बाबू सुन कर तुम कहाँ मानोगे, यही कहना बुढ्ढे पगलाए गए हैं’
थोड़ा झुंझला कर हम धीमी आवाज़ में बोले, ‘लगता है कोई नजदीकी चल बसा बाबा
बाबा हमारे कंधे पे कापता हाथ रख कर फूट पडे
‘ये इंसानियत का जनाज़ा है बेटे, जाने कब से गायब थी, आज इसका क्रिया करम है’
यकीन न मानो तो अपने माँ-बाप से पूछना, ‘कब मरी मेरी इंसानियत’
और जनाज़ा नारे चिल्लाता बढ चला, राम का नाम शायद मिथ्या ही हो गया था…
‘ये इंसानियत का जनाज़ा है बेटे, जाने कब से गायब थी, आज इसका क्रिया करम है’
यकीन न मानो तो अपने माँ-बाप से पूछना, ‘कब मरी मेरी इंसानियत’
और जनाज़ा नारे चिल्लाता बढ चला, राम का नाम शायद मिथ्या ही हो गया था…
Originally published here
nice Abhishek mishra ji
ReplyDeleteThank you for that great article.
ReplyDeleteaspiration Alyse Fifine insulate nicki divers anaya Nir chucho
I have been checking out some of your posts and its pretty good stuff. I will definitely bookmark your website.
Korean Air Purifier Brands
Negative Ion Generator Reviews Consumer Reports
Air Purifier Made In Germany